
असली प्यार
पत्नी घबराई हुई आई और पति से बोली “कोमल तो भाग गई!” धर्मपाल दांत पीसते हुए बोला “क्या बक रही हो? कहा था न उसका ध्यान रखना। बारात डेरे में पहुंचने वाली है। लगता है, आज मेरा आखिरी दिन है। बेटी ने मेरे दुनिया से जाने का इंतजाम कर दिया है।” पत्नी रोने लगी। बोली, “अब क्या हुआ जी?”
धर्मपाल बोला, “तुम्हारे निकम्मे बेटे कहां है?” दोनों से कहा था मैंने कि “इस मूर्ख लड़की का ध्यान रखना, यह कभी भी भाग सकती है।” पत्नी बोली, “दोनों उसे ढूंढने गए हैं। अभी 10 मिनट पहले भागी है।” 10 मिनट का नाम सुनकर धर्मपाल को थोड़ी तसल्ली मिली और हिम्मत भी। बोला, “तब तो ज्यादा दूर नहीं गई होगी तुम घर में तलाश करो! पीछे बाड़े में भी देखना। अभी अंधेरा नहीं हुआ है। हो सकता है घर में ही कहीं छुपी बैठी हो। और रात होने का इंतजार कर रही हो।”
पूरा परिवार कोमल को ढूंढने में लग गया। वैसे तो पूरा गांव जानता था कि कोमल और राजेश का चक्कर चल रहा है। दो बार राजेश और कोमल के परिवार के बीच इस बात को लेकर झगड़ा भी हो चुका था। राजेश एक आवारा टाइप का लड़का था। कोमल और उसकी जाति भी अलग थी, मगर उसने कोमल को अपने प्रेम जाल में इस तरह जकड़ लिया था कि कोमल उसके बिना जीने की सोच भी नहीं सकती थी। वह बिल्कुल उसके शिकंजे में ऐसी फंसी हुई थी जैसे कांटे में कोई मछली फंसी होती है। वह कितना भी चाहे, कितना भी तिलमिलाए, लेकिन निकल नहीं पाती है।
कोमल बहुत सुंदर थी। धर्मपाल ने उसके लिए एक सुंदर और अच्छे घर के लड़के को देखकर उसके सगाई कर दी थी। वह सिर्फ पांचवी पास थी। उस दौर में लड़कियों को ज्यादा पढ़ने का रिवाज भी नहीं था इसलिए गांव की प्राइमरी स्कूल के बाद कोमल की पढ़ाई बंद करवा दी गई थी। चार बहनों में से एक कोमल ही साक्षर थी यानी कि थोड़ी-बहुत पढ़ी-लिखी थी। बाकी की बहनों ने तो स्कूल का दरवाजा भी नहीं देखा था। वे तो बस इस बात को सोचती हुई रहती थी कि काश वे पांचवी पास ही कर पातीं। छोटी थी इसलिए उसे पांचवी पास करने का अवसर मिल गया था।
खेतों में जाते समय और गांव के इकलौते कुएं से पानी भरते समय कोमल और राजेश की आंखें टकरा गई थी। बंदिश और निगरानी रखने के बाद भी कोमल बहक गई थी। जब राजेश रोज घर के चक्कर लगाने लगा तो बात बहुत आम हो गई थी। दोनों परिवार में कहा-सुनी भी हुई। कोमल के पिता को लगता था कि राजेश ही उसकी बेटी के पीछे पड़ा है मगर जब बेटी की सगाई कर दी तब कोमल बिखर गई थी। बोली, “शादी करूंगी तो राजेश से करूंगी वरना किसी के साथ नहीं करूंगी मैं और राजेश एक दूसरे से बहुत ज्यादा प्यार करते हैं और हम एक दूसरे के बगैर नहीं रह सकते हैं।”
धर्मपाल ने बेटी को बहुत समझाया, इज्जत की दुहाई भी दी। दो-चार थप्पड़ भी लगाए। घर से निकलना भी बंद कर दिया था लेकिन फिर भी कोमल बिल्कुल भी नहीं मानी। फिर आखिर में कोमल की शादी की तारीख उसके मंगेतर पंकज से पक्की कर दी मगर कहते हैं यह प्यार करने वाले अपने प्रेमी के सिवा किसी और के नहीं होते। और ना ही किसी और के बारे में सोचते हैं। वही हुआ कोमल शादी वाले दिन ही भाग गई थी।
धर्मपाल और उसकी पत्नी चुपचाप से घर में तलाश कर रहे थे। इतने में उसके दोनों बेटे लौट आए उनके साथ में कोमल की सहेली थी। बड़े बेटे ने कहा, “बापू यह राजेश के घर के आसपास मंडरा रही थी। इसको जरूर पता है कि कोमल कहां है। फिर कोमल की सहेली से जब कढाई से पूछताछ की गई तो वह टूट गई उसने बता दिया कि कोमल कहां छुपी है!
कोमल घर के पीछे बाड़े में छुपी थी और किसी को खबर तक नहीं हुई। बाड़े में बने चप्पल में पड़े पशुओं के चारे में उसने खुद को इस तरह छुपा रखा था कि किसी को भी नजर ना आए। सहेली राजेश को संदेश देती उसके बाद रात दोनों का भगाने का प्लान था। ये दोनों कहीं दूर निकलकर अपनी एक अलग दुनिया बसाना चाहते थे। जब उसे चप्पल से निकाला गया तो वह पसीने और भूसे से सरोवर होकर भूतनी-सी लग रही थी। कच्चा प्लान था इसलिए पकड़ी गई वरना शायद अगर रात के अंधेरे में कहीं निकल जाती है तो कभी पकड़ी भी न जाती।
पकड़े जाने के बाद भी वही हुआ जो एक हरा हुआ पिता करता है। उसने बेटी के हाथ में हथियार देकर कहा, “ले पहले मेरा काम तमाम कर दे फिर कहीं भी भाग जाना।” उसके बाद कोमल कुछ ना बोली। वह एकदम शांत हो गई जैसे उसे कोई सांप सुन गया हो। बाद में वह शादी के लिए मान गई और शांति के साथ शादी की सारी रस्मों को निभाते हुए पति संग ससुराल चली गई। वह शादी का मंडप उसे कोई चिता के समान प्रतीत हो रहा था जैसे कि वहां उसकी शादी नहीं बल्कि उसकी अर्थी तैयार हो रही हो।
शादी की पहली रात यानी सुहागरात वाले दिन जब पति उसके कमरे में आया तब कोमल पूरी तरह से तैयार बैठी थी कि अगर छूने की कोशिश करेगा तो वह उसे साफ मना कर देगी और उसे अपने प्यार के बारे में सब कुछ बता देगी।
मगर उसे आश्चर्य हुआ जब पति चुपचाप आकर बिना बोले दूसरी खटिया पर लेट गया।
कोमल दहेज में दी हुई खाट पर दुल्हन बनी बैठे, पति को सोते हुए देखती रही। उसे बड़ा अजीब लगा कि ये कैसा आदमी है? जवान और हसीन पत्नी से सुहागरात पर बिना कोई बात किए चुपचाप सो रहा है।
जब विचारों की उलझन के काँटे, कोमल के मस्तिष्क मानो गड़ से रहे हों तब उसने आवाज देकर पति को कहा, “सुनते हो सो गए क्या?”
उसका पति पंकज आंख बंद किए ही बोला, “नींद आ रही है, तुम भी सो जाओ।” “मुझे आपसे कुछ बातें करनी है,” कोमल ने जवाब दिया। इतने में पंकज बोला, “मैं जानता हूं क्या बातें करनी है! थका हुआ हूं इसलिए कल बात करेंगे।”
बोली, “क्या जानते हो? तो पंकज ने कहा, “यही कि तुम मेरी नहीं हो। मैं एक पराई स्त्री को व्याह लाया हूँ।” अब कोमल का दिल धक-धक करने लगा। बोली, “कैसे जानते हो? और अगर जानते ही थे तो फिर शादी क्यों की? तो वह बोला, “शादी करना तो मजबूरी थी। अगर नहीं करता तो तुम्हारे पिता की इज्जत सरे-बाज़ार नीलाम हो जाती। मेरे परिवार की भी इज्जत के राख में मिल जाती। खाली हाथ अगर बारात लौटी जाती तो हम लोगों का वापस गांव में प्रवेश करना ही मुश्किल हो जाता है। यही सब सोचते हुए मैंने सबकुछ सहन किया और शान्ति के साथ तुम्हारे साथ सात फेरे लिए।”
इतना कहते ही कोमल बोली, “जब इतना बता दिया है तो यह बता दो कि मैं पराई कैसे हुई?” वह खाट पर बैठता हुआ भोला-भला इंसान एकदम से बोला कि एक राजेश नाम का शख्स आया था बारात के डेरे पर, खुद को तुम्हारा आशिक बता रहा था। बोल रहा था कि तुम उसकी हो। तुम उससे प्यार ही नहीं बल्कि बहुत-बार उसके साथ सोई भी हो। इसलिए मैं तुमसे शादी ना करके चुपचाप बारात को वापिस ले घर वापस चला जाऊं। इसी में ही सबकी भलाई है।
कोमल का दिमाग सांय-सांय करने लगा। मैं बोली, “फिर आपने उसे क्या जवाब दिया?” इस पर पंकज बोला, “तुम मेरी होने वाली पत्नी थी। तुम्हारे बारे में कोई भी ऐरा-गैरा अनाप-शनाप बोलेगा तो मैं कैसे सहन कर सकता था। मैंने उससे कहा, “तुम जैसे सड़क छाप की बात पर मैं यक़ीन क्यों करूं? वह तुम्हें नहीं मिली। इसलिए उसे पर कीचड़ चल रहे हो। जब पहुंच के बाहर हो तो अंगूर खट्टे!”
कोमल कृतज्ञता के भाव से बोली, “जब आपने उसकी बात पर भरोसा ही नहीं किया तब मैं पराई कैसे हो गई?” पंकज उदास होकर बोला, “यह बात तो पूरा गांव जानता है। पड़ोसियों ने भी पूरा नज़ारा अपनी आंखों से देखा था। तुम्हारे आशिक ने यह बात भी मेरे तक पहुंचाने के लिए एक आदमी भेजा था।”
यह सब सुनकर कोमल के शरीर से जान निकल गई। हिम्मत जवाब दे गई। वह मायूस होकर बोली, “हाँ! मैं राजेश से प्रेम करती हूँ। मगर यह गलत है कि मैं उसके साथ सोई हूँ। मेरे मन पर उसका कब्जा है पर मेरे बदन को मैंने किसी को भी नहीं सौंपा है अब तक।”
पंकज बोला, “शादी वाले दिन ये नाटक करने की क्या जरूरत थी। प्रेम था तो पहले ही भाग जाते। या कुछ और कर लेती, लेकिन शादी वाले दिन पर अपने पिताजी का नहीं बल्कि हमारा भी तुमने मजाक बनवा दिया। शायद इसके लिए मैं तुम्हें कभी माफ ना कर पाऊँ।”
कोमल चुप हो गई। ये सुनते ही वह बोलै, “जब पहली बार तुम्हारी फोटो मुझे दिखाई गई थी, तभी मुझे तुमसे प्रेम हो गया था। फिर जिस दिन तुम्हें देखने गया था तब तो तुम्हारे अपूर्व सौंदर्य और भोलेपन पर मैं मर-मिट गया था! मैंने तुम्हें लेकर बहुत तो सपने देखे थे मगर जिंदगी के सबसे अहम दिन सारे सपने टूट गए मैं खुद से नजर नहीं मिला पा रहा था। शायद, मुझ में ही किसी को पहचानने की कमी हो गई। शायद ही मेरी चूक थी।”
कोमल उस वक्त कुछ ना बोली। बोलती भी क्या उसके पास बोलने के लिए कुछ था ही नहीं।
इतने में पंकज फिर आगे बोला, “जिस दिन तुम्हें देखने गया था उसी दिन बता देती तो इतनी तकलीफ और समस्या नहीं आती। मैं खुद ही तुम दोनों के रास्ते से अलग हो जाता। पर तुम तो उस दिन कुछ बोली भी नहीं थी। ये तुमने गलत किया। सरासर गलत किया। मुझे लगा लोक-लाज के कारण तुम चुप थी। या फिर हो सकता था कि तुम्हारा कम बोलने का ही नेचर हो लेकिन मुझे इस बात का जरा सा भी अंदाजा नहीं था कि जिस दिल में मैं घर बनाने की सपने देख रहा हूं वह किसी और के नाम हो चुका है और मैं बस एक मुसाफिर की तरह यहां कुछ समय के लिए ही आया हूँ।”
कोमल बोली, “आपकी बातों से मुझे ऐसा लग रहा है कि आप बहुत समझदार हो। अब आप मेरे पति भी हो! अब, आप ही बताओ मुझे क्या करना चाहिए? इतने में पंकज बोला, “यह तुम्हारी अपनी जिंदगी का सवाल है। इसका फैसला भी तुम्हें लेना होगा। तुम्हें ही पता होना चाहिए कि तुम आगे क्या करोगी। मेरे साथ रहोगी या वापस राजेश के पास जाओगी? मैं अपनी बता सकता हूं कि मैं क्या करने वाला हूं।”
इतने में डरती हुई आवाज़ में कोमल ने धड़कते हुए दिल से पूछा, “अब आ… आप क्या करोगे?”
उसने उदासीन स्वर में बोला, “मेरी तरफ से तुम रिहा हो। जब तुम्हारा दिल ही मेरा नहीं, तो तुम्हारा जिस्म का मैं क्या ही करूंगा?” इसलिए जब तुम पहली बार अपने मायके जाओगी, तब मैं तुम्हें लेने नहीं आऊंगा। तुम अब आजाद हो। जाओ, अपने दिल की सुनो और लौट जाओ राजेश के पास।”
कोमल बोली, “विदाई के बाद मायके से कोई ना कोई शख्स हर लड़की के साथ आता है। ससुराल की शुरुआती दिनों में उसका सहारा बनने के लिए। फिर एक दिन बाद उसे विदा करके ले जाता है। मेरे साथ तो कोई भी नहीं आया। शायद मैं उस घर के लिए मर चुकी हूं। वो लोग मुझे हर हालत में, घर से निकलना ही चाहते थे। सो निकाल दिया। अब अगर मायके से, मुझे कोई लेने नहीं आया तब आप क्या करेंगे?”
वो बोला, “इंतजार करो कोई ना कोई जरूर आएगा। फिलहाल सो जाओ मुझे भी नींद आ रही है।”
फिर भी दोनों सोने की कोशिश करने लगी है मगर नींद किसकी आंखों में थी? और होती भी कैसे? दोनों की जिंदगी दांव पर लगी थी। दो ऐसे लोग बंधन में बांध गए थे जिन्हें शायद कभी बंधन में बंधना ही नहीं था। मगर दोनों की जिंदगी का यह पड़ाव भी अजीब था। एक-दूसरे के होते हुए भी पराए से थे।
कुछ देर के बाद कोमल सो गई थी मगर पंकज जाग रहा था। उसने बल्ब जला कर देखा तो घुटनों में मुँह देकर गठरी-सी बनी सो रही थी। उसके मासूम सर पर उलझन के भाव थे। जैसे कि ये दुनिया उसकी समझ में ना आई हो। पंकज सोच रहा था, “यह सिंदूर जो उसकी मांग में है, इसका क्या वजूद है? यह है तो मेरे नाम का, लेकिन इस पर नाम और हक किसी और का होना चाहिए था।”
इतने में पंकज की नजर उसके सुंदर से चेहरे पर गई। उसने सोचा, “यह सुंदर-सी, छुईमुई-सी लड़की जो अब उसकी पत्नी है, जिस पर आज उसका सर्व अधिकार है। फिर भी इसके नन्हे से दिल में वह कहीं नहीं है। यह कैसा अधिकार हुआ?” वह चाहता तो उस बारात वाले दिन, पूरी बारात को ही वापस लेकर आ सकता था। लेकिन न जाने क्या सोचते हुए उसने बारात को वापस नहीं किया और उस छुई-मुई सी लड़की से शादी करके अपने साथ अपने घर ले आया। कितना बड़ा मूर्ख है वह।
उसे रात वह चाहता तो अपने पति होने का अधिकार जबरदस्ती हासिल कर सकता था मगर वो ऐसा लड़का नहीं था। उसे कोमल पूरी चाहिए थी। उसका तन और मन दोनों चाहिए था। सर्दी पड़ रही थी तो पंकज ने एक चादर उठाकर कोमल को उड़ा दी थी। चादर कोमल के बदन को छूते ही कमरे में डरते हुए कोमल ने झटके से आंख खोल दी। फिर पंकज को देखा तो मुस्कुराते हुए फिर से आंख बंद कर ली।
सुबह पंकज से पहले उठकर कोमल दैनिक कार्य में लग गई थी। इतनी सुंदर बहू पा कर कोमल की सास बहुत खुश थी। कोमल की नन्द और देवर भी खूब नई भाभी के चारों ओर मंडरा रहे थे। उसे खुश करने के लिए अच्छी-अच्छी चीज़ें खिला रहे थे। अच्छी-अच्छी बातें कर रहे थे। कोमल उनके साथ मिलकर चहक उठी थी। कोमल भी कुछ समय के लिए भूल गई थी कि कल रात उसके पति से उसका मिलन हो ना सका और उसके पीछे कारण वह खुद ही थी। उसके उस दिल में जगह पहले राजेश ने ही बना रखी थी।
कोमल की ज़िंदगी के पिछले 2 साल बहुत बुरे गुज़रे थे। जब से उसके घर वालों ने उसके प्रेम प्रसंग के बारे में पता चला था तब से ही घर में उसकी इज्जत बहुत कम हो गई थी। सब उसे और उसके घर के कुत्ते को एक ही बराबर तोलने लगे थे। सभी उसके साथ बड़ी ही रूढ़ता के साथ पेश आते थे। अपनों के प्यार के लिए वो तरस गई थी। मगर ससुराल में सभी का निश्छल प्रेम पाकर उसका चेहरा फिर से खिल उठा था। पंकज अपनी अलग खाट पर सोता था। पता नहीं क्यों कोमल को पंकज पर एक अलग तरह का भरोसा हो गया था। वह उसके संयम और दोस्ताना व्यवहार की कायल हो गई थी। भूल गई थी कि पंकज था तो उसका पति ही। उसका संयम उसकी कमजोरी नहीं बल्कि उसकी दृढ़ता और कोमल की प्रति उसके लगाव का एक जीता-जागता उदाहरण था।
पंकज सुबह-सुबह खेत में चला जाता था। खेत में सरसों और गेहूं की फसल अपनी जवानी पर थी। सुंदर और मनमोहक हरियाली के बीच वह काम करते हुए, सुकून को तलाशने की कोशिश करता था। जो कि शायद उसे घर पर नहीं मिल पाता था जबकि वह अपनी नई-नवेली दुल्हन के साथ एक ही कमरे में सो रहा था। उसका खाना खेत में हीं आ जाया करता था। बहन या भाई में से कोई एक ले आता था। मगर एक दिन बहन के साथ छम छम करती कोमल भी खेत में आ धमकी!
खेत में पसरी हरे रंग की चादर के बीच कोमल का सौंदर्य और भी ज्यादा निखर कर सामने आ रहा था। सर पर खाने का सामान रख कर, जब वह उसके समीप आकर खड़ी हुई तो वह उसे देखता ही रह गया। वह अचानक ही उसे अथाह प्रेमभाव से घूरने लगा। खेत में बने घास-फूस की छप्पर में बैठकर खाना खाने लगा। तब कोमल उसके पास बैठी उसे निहार रही थी। पंकज की बहन खेत में घूमने चली गई थी।
अभी उसने खाना खाया ही था कि अचानक से तेज हवा के कारण छप्पर हिला और फिर तेज़ी से गिरने लगा। छप्पर से बाहर भागने का वक्त नहीं था। मगर पंकज ने फुर्ती दिखाते हुए, कोमल को बाहों में ले लिया और उसे कोई चोट ना लग जाए इसलिए उसे सबसे पहले सुरक्षित किया। पंकज का ऐसा करना कि हवा चले और वह खुद को ही ढाल बनाकर उसके ऊपर छा जाए। ऐसा करने से कोमल का मन पंकज की ओर आकर्षित होने लगा।
छप्पर में लगे मोटे काठ के लट्ठ और घास-फूस का ढेर सारा वजन उनके ऊपर आकर गिरा। कोमल के मुँह से चीख निकल गई। मगर जब उसने देखा कि वह पंकज की बाहों में सुरक्षित है। उसे बचाने के लिए पंकज ने खुद को उसके ऊपर एक ढाल बनाकर रख लिया था। वह चौंक गई। पर अचानक ही उसे पंकज की बहुत चिंता होने लगी। वह बोली, “आप ठीक हो जी? पंकज को बहुत चोटें आई थी। कई जगह से खून भी बहने लगा था फिर भी वह बोला, “ठीक हूं! मगर अब निकले कैसे?”
शोर सुनकर पंकज की बहन दौड़कर कर आ गई। वह भाई और भाभी को आवाज लगाती हुई उनके ऊपर गिरा सामान हटाने की कोशिश करने लगी। इस काम में उसे काफी समय लग गया। कोमल पंकज के सीने के निचे मेहफ़ूज़ थी। उसने महसूस किया कि पंकज बहुत ताकतवर है। इतना शक्तिशाली है कि इतना वजन उसके ऊपर गिरा हुआ है फिर भी वह कोशिश कर रहा है कि वह उसके ऊपर ज़रा भी भार न आने दे।
पंकज की बहन उनके ऊपर गिरा मलबा हटाने में लगी थी। मलबे के नीचे नीचे दबे पंकज की पीठ पर लगे ज़ख्म से खून निकल कर जब कोमल चेहरे पर गिरा तब वह बहुत डर गई थी। बोली, “आपको तो बहुत ज्यादा चोट लगी है जी!”
फिर वह नीचे से ही अपना हाथ ऊपर ले जाकर उसके पीठ पर जख्म टटोलने लगी कि उसे कितनी चोट आई थी। यह कोमल का पहला स्पर्श था। उसके कोमल हाथ में न जाने ऐसा क्या था कि ऐसी परिस्थिति में भी पंकज थरथरा गया था।
बड़ी मशक्क़त के बाद दोनों मलबे से बाहर निकले। भाई की हालत देखकर बहन तो रो ही पड़ी। वह जगह-जगह से छिल गया था। पूरे शरीर पर खरोचों के निशान थे। पुराना छप्पर था। अंदर लगी लड़कियों को दीमक ने खोखला कर दिया था। कोमल आंखों में आंसू भरकर बोली, “लगता है मैं ही मनहूस हूँ। मेरा खेत में पगफेरा होते ही, यह मुसीबत आन पड़ी।” इतने में ननद बोली, “आप क्यों खुद को दोष दे रही हो, भाभी? होनी तो पहले से ही लिखी होती है। उसे कौन ही रोक सकता है?”
उसके बाद आगे के दिन कुछ अलग ही थे। कोमल उसके जख्मों पर दवा लगाया करती थी। वह अपनी पीड़ा उसके स्पर्श से ही भूल जाता था। कोमल एक महीने तक ससुराल में रही। इस दौरान वो सबसे घुल-मिल गई थी। उसने पंकज को बहुत करीब से देखा था। वह उसे बहुत प्यारा और मासूम सा लगा।
कोमल का पिता धर्मपाल नहीं चाहता था कि उसे मायके लाया जाए। मगर लोक-लाज के डर से, उसे ऐसा करना पड़ा। कोमल का बड़ा भाई आया और उसे मायके ले गया।
पीहर आने के बाद वह अजीब से भंवर-जाल में फंस गई थी। अब उसे राजेश याद ही नहीं आता था। रह-रह कर बस पंकज का चेहरा सामने आता था। राजेश से तो उसने सिर्फ आँख-मिचौली खेली थी। मगर पंकज को उसने करीब से जाना था। इतने दिन एक मर्द के साथ एक कमरे में रही। फिर भी उसे कभी भी नहीं लगा कि वह उसे छूना चाहता हो। मगर एक बार अंधेरे में जब वह अपने आशिक राजेश से बात कर रही थी, तो राजेश ने तो उसे दबोचने का प्रयास किया था।
जब वह अपने पति के बारे में सोच रही होती तो उसके चेहरे पर एक अजीब मुस्कान सी आ जाती थी। उसे याद आया एक दिन उसकी ननद रसगुल्ले लेकर आई थी। बोली, “भैया तुम्हारे लिए शहर से लाए हैं भाभी। मैं मुझे कहा है तुम्हें ना बताऊं कि कौन लाया है!” यह सोचकर उसकी आँखों में आंसू आ गए। वह अकेली ही बड़बड़ाई, “पागल है वो। बोल कर कुछ नहीं कहते। मगर प्यार तो मुझसे बहुत ही करते हैं।”
एक रात वह सोने से पहले मंगलसूत्र उतार रही थी मगर मंगलसूत्र को छूते ही पंकज का उदास चेहरा उसके सामने घूमने लगा। जब वह भाई के साथ पीहर आने के लिए, घर से निकल रही थी। तब कमरे की दहलीज पर उदास खड़ा पंकज सूनी आँखों से, उसे ही देख रहा था। जैसे कि पूछ रहा हो, “फिर से लौट कर आओगी या नहीं?”
पागल एक बार रोक कर यह तो कह ही सकते थे कि “मेरा इंतजार करना। मैं तुम्हें लेने जरूर आऊंगा। मगर मैं तो पराई हूँ ना। शायद वो नहीं आएंगे। उन्होंने पहले दिन ही बोल दिया था कि जब तू मायके चली जाएगी, उसके बाद तुम्हें लेने नहीं आऊंगा। समझ लेना तुम्हें रिहा कर दिया है!”
मगर उन्हें नहीं पता मुझे रिहाई नहीं चाहिए। ऐसे कैसे रिहा कर देंगे। शादी हुई है, सात जन्मों का बंधन है। कहने से थोड़ी टूट जाएगा।
अभी कोमल को मायके आए तीन दिन ही हुए थे कि उसकी एक सहेली आ गई। जब कोमल ने राजेश का हाल पूछा तो सहेली बोली, “वो तो बिल्कुल मजे में है। तेरे जाने के बाद वह नीलम के साथ सेट हो गया है।” इतना सुनते ही कोमल के दिल में भूंचाल-सा आ गया। जिसके लिए वो पूरे घर वालों से लड़ गई थी। जिसके लिए अपने देवता जैसे पति की नज़र से भी गिर गई थी। वह तो सच्चे प्यार का क ख ग भी नहीं जानता था। वह तो बस उसे टटोल रहा था। शायद उसके शरीर के साथ खेलना चाहता था जो कि मुमकिन ना हो सका।
अब तो बची-कुची धुंध भी मिट गई थी। सारा कोहरा छठ गया था। कोमल की समझ में आ गया था कि जो प्यार लफ़्ज़ों से बयां किया वह प्यार नहीं होता। झूठे कसमे वादे करना, सच्चा प्यार नहीं होता। प्यार तो मूक, चुप, और मौन-सा सम्मोहन है। एक एहसास है जिसे उसने अपने पति के पास रहते हुए अनुभव किया था। जो कि कभी उसे राजेश से प्राप्त नहीं हुआ था। कोमल को वह सीन फिर याद आ गया जब पंकज लहु-लूहान होकर भी उसे बचा रहा था। खुद दर्द में होकर ये देख रहा था कि वह सुरक्षित है या नहीं।
जिस राजेश के लिए उसने दुनिया से लड़ने की ठानी थी, उसे खोकर भी जरा भी दुख नहीं हो रहा था। बल्कि और खुद को हल्की महसूस कर रही थी कि मानो कितना बड़ा बोझ उसके सीने से उतर गया हो। एक बहुत ही बड़ा पत्थर जो उसने अपने सीने पर रख रखा था, वह हट गया था। सहेली के जाने के बाद वह शीशे के सामने बैठ गई। फिर गले में पड़े मंगलसूत्र को चूमने लगी। उसे माथे से लगाकर भगवान का आभार व्यक्त करने लगी कि उसे इस मायाजाल से ईश्वर ने निकाल लिया था।
कोमल ने शीशे के सामने बैठकर पूरे सोलह सिंगार किए। मांग तो इतनी लंबी भारी कि उसे पीछे चोटी तक ले गई पूरी तरह तैयार होकर, वह माँ के पास गई और बोली, “कैसी लग रही हूँ मैं माँ?” उसे इस हालत में देख कर माँ डर गई, क्योंकि उसे आए हुए अभी 3 दिन ही हुए थे। माँ सोचने लगी कि, “यह किसके लिए सज-धज कर आई है। दामाद जी तो इतनी जल्दी आने से रहे। ज़रूर ही ये उस कलमुहे राजेश के लिए तैयार होकर आई है।”
मगर बाहर से नॉर्मल रहते हुए माँ बोली, “बहुत सुंदर लग रही हो बेटी।” फिर कोमल सपाट लहज़े बोली, “माँ, एक बजे की बस है। भाई को साथ भेज दो। मुझे ससुराल जाना है।” इतना सुनकर माँ के हृदय में एक खुशी की लहर-सी दौड़ पड़ी। मगर वो खुशी को दबाते हुए बोली, “अभी 3 दिन ही हुए हैं, तुम्हें आए हुए। कुछ दिन मायके में भी रह लेम फिर बाद में अपने ससुराल चली जाना, कोई तुझे नहीं रुकेगा।”
इतने में कोमल तपाक से बोली, “क्या करोगी मुझे रखकर, माँ? घर से एक सदस्य को तो मेरी निगरानी में बैठना होगा। और तुम लोगों के पास, मुझसे बात करने के लिए वक्त भी नहीं है। मैं थोड़ा सा बहक गई थी, मगर फिसली नहीं हूँ। यह उम्र ही ऐसी होती है। मगर तुम लोगों को भी मुझे समझाना नहीं आया। घर मे बंद करने से, मार-कुटाई करने से ये बचपना नहीं जाता। कितना अजीब है ना, माँ? मेरे पति ने बिना कुछ बोले मुझे समझा दिया।”
कमरे के बाहर खिड़की के पास खड़ी कोमल का पिता यह सब सुनकर रो पड़ा। भटकी हुई बेटी रास्ते पर आ गई थी। एक बहुत ही ज्यादा समझदार दमाद मिला था। उससे ज़्यादा एक बेटी के बाप और क्या ही चाहिए? वह आँसूं पोंछता हुआ, कमरे के भीतर आकर बोला, “चल बेटी, मैं तुम्हें तुम्हारे ससुराल छोड़ कर आता हूँ!”
कोमल भरी आँखों से पिता की तरफ देखकर बोली, “बापू, एक बात कहनी थी आपसे। बाप बोला, “हाँ बोल क्या बात है?” कोमल बोली, “पहले तो ऐसा लगता था जैसे कि आप बाप नहीं दुश्मन हो! मगर आज समझ में आया कि बापू की आपसे ज्यादा मेरा अच्छा सोचने वाला कोई और नहीं है दुनिया में। मेरे जैसी बेकार बेटी के लिए आपने इतना अच्छा दामाद कैसे ढूंढ लिया, बापू?”
बाप के मुँह से कोई बोल नहीं फूटा। उसने रोती-बिलखती बेटी को गले से लगा लिया। कोमल शादी के बाद विदाई पर भी पिता के गले नहीं लगी थी। मगर जब आज गले लगी, तब उसे एहसास हुआ कि उसकी असली विदाई तो आज हो रही है। बिना बात के गले लगे कैसे विदाई?
फिर धर्मपाल बेटी को ससुराल छोड़ आया। कोमल की सास से सोचकर बहुत खुश हुई कि बहू का मायके में मन नहीं लगा। कोमल की ननद ने बताया, “भाभी, तुम गई उसी दिन से भैया खेत में ही सोने लगे हैं। कहते हैं कि फसल पकाई पर है इसलिए रखवाली जरूरी है। इसीलिए शाम का खाना भी उन्हें खेत में जाकर देना पर पड़ता है।”
कोमल बोली, “आज खाना मैं लेकर जाऊंगी! आप मुझे खेत तक छोड़ आना बस। मैं वापस नहीं आऊंगी। आपके भाई के साथ, मैं भी खेत की रखवाली करूंगी।”
“मैं सब समझती हूँ कि आप दोनों कौन सी रखवाली करोगे। बच्ची नहीं हूँ, शादी की उम्र हो गई है मेरी भी।” ऐसा कोमल की ननद ने बोला। फिर दोनों ननद-भाभी हँसने लगी।
कोमल नंद के साथ तो हंस ली थी पर उसके अंदर ही अंदर एक तूफ़ान सा उठ रहा था। उसे डर लग रहा था कि पंकज ने उसे उल्टा कर के धक्के मार कर निकाल दिया। तब क्या होगा? तब तो वह कहीं की नहीं रहेगी। पता नहीं आज क्या होगा? यह सोचकर उसका नन्हा सा दिल उछल पड़ता था।
अँधेरा होने में कुछ ही वक्त बाकी था। पंकज ट्यूबल पर नहा कर आया ही था। अभी छत पर भी नहीं बैठा था कि उसे सर पर खाने का सामान लेकर कोमल आती हुई दिखाई दी। उसे लगा कि यह उसका भ्रम है। इसलिए उसने ज़ोर से अपनी कमर में चिकोटी काटी। जब दर्द हुआ, तो उसे ऐसा हुआ कि यह कोमल ही है। जब भ्रम दूर हो गया तो उसका दिल धक-धक करने लगा। साँस थोड़ी तेज़ चलने लगी।
कोमल बिल्कुल पास आ गई थी। उसने खाट पर खाना रख दिया। फिर खड़े होकर पंकज की ओर देखने लगी। वह बोला, “तुम तो कभी ना लौट कर आने के लिए गई थी ना?” कोमल उसकी आँखों में देखते हुए बोली, “मेरे कुछ सवालों के जवाब अधूरे रह गए थे, वही पूछने के लिए लौट आई हूं!”
इतने में कुछ सोच-विचार कर पंकज बोला, “कैसे सवाल?” इसका कोमल ने जवाब दिया, “क्या आपके दिल में मेरे लिए थोड़ा बहुत प्यार बाकी है?” पंकज बोला, “पता नहीं!” फिर कोमल बोली, “ठीक है, मत बताओ! इतना तो बता दो कि क्या मैं आपकी नजर में चरित्रहीन हूँ?” इस बात पर पंकज चुप हो गया। कुछ समय के लिए दोनों के बीच में सन्नाटा पसर गया। दोनों कभी एक-दूसरे को देखते तो कभी इधर-उधर देखकर खेतों की चर्चारहाट को सुनने लगते। रात पूरे उफान पर थी। कोमल आँखों में आँसूं भरकर बोली, “भगवान के लिए, यहां चुप मत रहो। जो भी आपके मन में है, बोल दो!”
पंकज बोला, “नहीं, बिल्कुल नहीं! तुम मेरी नजर में एक पवित्र नारी हो।” उतना सुनते ही कोमल रो पड़ी। उसके पैरों में बैठते हुए बोली, “माफ कर दीजिए मुझे! बच्ची हूँ, नादान हूँ। अच्छे-बुरे का ज्ञान नहीं है। ना ही कभी था। जवानी कमबख्त विचारों का तूफान लेकर आई थी, उसी में बह गई थी। मगर आपसे मिलने के बाद पता चला कि वो प्यार नहीं था। बल्कि प्यार तो वो था, जो आपने मुझे दिया। वो तो सिर्फ एक लड़खड़ाहट ही थी। सच तो ये है कि प्यार तो मुझे अब आपसे ही हो गया है जिसमें एक मीठा सा दर्द है। एक उम्मीद की मुस्कान है। एक रूह का सुकून है!”
पंकज खाट पर बैठता हुआ बोला, “क्या एक बात कहूँ?” मैं ज़मीन पर बैठी हुई ही, उसका घुटना पकड़ कर पास सरकती हुई बोली, “क्या?” तो वह बोला, “जिस दिन तुम गई थी, उसी रात से मुझे नींद नहीं आई थी। ऐसा लगा था कि कलेजे से कुछ निकल कर दूर चला गया हो। मैं रात को उठकर खेत में चला आया था। फिर वापस गया ही नहीं। तब से यहीं पर हूँ। जाने क्या-क्या ख्याल दिन-भर में आते रहते हैं। सिर्फ तुम्हारे बारे में ही, हमेशा सोचता रहता हूँ। आज भी तुम्हारे बारे में ही सोच रहा था कि अचानक तुम मेरे सामने आकर खड़ी हो गई।”
इतना सुनते ही कोमल उसके घुटने से लिपट कर सिसकते हुए बोली, “फिर आपने मुझे रोका क्यों नहीं था?” फिर पंकज उदास होकर बोला, “मुझे आधी-अधूरी कोमल नहीं चाहिए थी। मुझे तो पूरी की पूरी कोमल चाहिए थी। मैं पहले तुम्हारे सुंदर से दिल में रहना चाहता था।”
इतना सुनते ही मैं तड़प कर बोली, “अब मैं पूरी तरह आपकी होकर आई हूँ! उस गंदगी को पूरी तरह से निकाल कर आई हूँ जो नादानी में मेरे दिल में घुस गई थी। तीन दिन आपसे दूर रहकर, मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लगा। जब दिल घबराने लगा, तो मैं लौट आई।”
दोनों सिर्फ खड़े होकर, एक-दूसरे से गले से लिपट कर रोने लगे। अंधेरा हो चला था। मार्च के महीने की सुहानी रात शुरू हो चुकी थी और खुले आसमान के नीचे दो आत्माओं का मधुर-मिलन हो रहा था। उन्हें मिलता देखकर फसल भी लहलहा कर एक-दूसरे के गले मिलने लगी थी। अब कोमल और पंकज हमेशा और हमेशा के लिए एक-दूसरे से जुड़ गए थे। अब वो दोनों हमेशा एक-दूसरे के साथ रहना चाहते थे। जैसे कि दो जिस्म और एक जान!
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