April 8, 2025
तलाक के 8 साल बाद एक सफर उनके साथ!
कहानियां और कवितायें

तलाक के 8 साल बाद एक सफर उनके साथ!

Mar 16, 2022

मैं ज्यों ही ट्रेन की जनरल बोगी में चढ़ी। एक जाना-पहचाना चेहरा मेरे पीछे आकर मेरी बगल में बैठ गया था। वह मेरा पति विपिन था। जो कभी मेरी ज़िन्दगी मेरी धड़कन हुआ करता था।  उसके साथ मैंने ज़िन्दगी के चार अहम् साल गुज़ारे थे।  मगर 8 साल पहले हमारा तलाक हो गया था। 

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हेलो दोस्तों, मैं आपको अपने बारे में तो बताना भूल ही गई।  मेरा नाम नीतू है, मैं अहमदाबाद की रहने वाली हूँ।  यह कहानी मेरे आपबीती पर ही आधारित जिसे नागर साहब ने लिखा है। आज से करीबन 10 बरस पहले मेरी और मेरी बड़ी बहन की शादी दिल्ली में रहने वाले दो युवकों से हुई थी।  मेरे पति का नाम विपिन था।  आज मेरा उनसे तलाक हो चूका है, मेरे ही गलती की वजह से। मगर आज अचानक मेरी ट्रेन में उनसे मुलाक़ात हो गई।  हाँ, तो मैं अपनी कहानी पर आती हूँ जब मैं अपने तलाकशुदा पति से दुबारा ट्रेन में मिली। 

वह मेरे बेहद करीब बैठा था।  मगर उसने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा था।  सीट पर बैठते ही चुपचाप अपने मोबाइल में लग गया था।   ये जान कर मेरे दिल में एक दर्द का गुब्बार सा उठा कि इतनी जल्दी उसने मुझे भुला दिया, जिसे मुझे बिना देखे नींद नहीं आया करती थी। वो आज तलाक के 8 साल के बाद मेरे इतनी करीब अजनबियों की तरह बिलकुल शांत बैठा हुआ था। 

दिल किया उसे एक बार छू लूँ। इसलिए मैं बिना उसकी तरफ देखे उसके थोड़ा सा नज़दीक हो गयी ताकि गलती से ही उसे थोड़ा सा छू लूँ तो दिल को सुकून आये जो कि पिछले 8 सालों से कहीं खो सा गया था।  जब मेरा कन्धा उससे टकराया तो उसके स्पर्श से एक सुकून सा मिला। पता नहीं क्यों कलेजे को एक ठंडक सी मिली।   पुरानी नजाने कितनी ही यादें फिर से ताज़ा हो गई जो नजाने दिल के किसी कोने में कहीं दफ़्न सी हो गई थी। वो पूरा 6 फुट का भरा-पूरा इंसान कभी सिर्फ और सिर्फ मेरा हुआ करता था, जो आज बिलकुल अजनबी हो गया था।

मेरे पति से कभी मेरी लड़ाई तक नहीं हुई थी।  कभी भी हम दोनों में मतभेद भी नहीं हुए थे।

लेकिन जब तलाक हुआ तब भी मैं उसे बहुत प्यार करती थी।  विपिन भी मुझसे प्यार करता था।  फिर भी हमारा तलाक हो गया था।  हमे न चाहते हुए भी एक-दुसरे से अलग होना पड़ा।  वजह भी अनोखी थी।  मेरी और मेरी बड़ी बहन की शादी एक साथ एक ही घर में हुई थी।

indian couple taking divorce in court

सबकुछ बिलकुल ठीक ही चल रहा था कि अचानक एक दिन मेरे जीजा जी ने एलान कर दिया कि वो मेरी दीदी के साथ नहीं रह सकतें हैं।  घर में मानो भूचाल सा आ गया हो।  उन्हें किसी और से शादी करनी है।  वो मेरी बहन को तलाक देना चाहतें हैं।  मगर उन्होंने किसी की भी नहीं सुनी।  पापा ने कहा अगर बड़ी बेटी को छोड़ दोगे तो मैं छोटी बेटी को भी यहाँ नहीं छोडूंगा।  अगर एक शादी टूटी तो दूसरी भी टूटेगी। 

इस टेंशन के बीच मैं और मेरी दीदी मायके आकर बैठ गई थी।  उस समय मैं नासमझ थी, खुद निर्णय लेने के काबिल नहीं थी। बस एक ही बात बुरी लग रही थी की दीदी के साथ गलत हो रहा है।  इसलिए मुझे दीदी का साथ देना चाहिए।  विपिन मेरे सामने बहुत गिड़गिड़ाया था, बोलै था “मैं भैय्या जैसा नहीं हूँ।  प्लीज नीतू मुझे छोड़कर मत जाओ।”  मगर पापा और भाइयों ने साफ़ कह दिया था कि या तो हमे चुन लो या फिर अपने पति को।  अगर अपने पति के साथ गई तो हमसे हमेशा के लिए तुम्हारा रिश्ता ख़त्म हो जायेगा। 

फिर दीदी के साथ मेरा भी तलाक हो गया।  फिर हम दोनों बहनों के लिए फिर से लड़के देखे जाने लगे। तलाक के बाद मुझे एहसास हुआ कि मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी है।  अब मुझे विपिन जैसा लड़का मिलना नामुमकिन है क्योंकि हम तलाकशुदा बहनो के लिए ऐसे-ऐसे रिश्ते आते थे जिन्हे देखकर मैं घबरा जाती थी। शराबी, हिस्ट्रीशीटर, और चार-चार बच्चों के पिता जो मुझसे उम्र में दुगुने बड़े थे। 

खुद से 15 साल बड़े एक बुज़ुर्ग के साथ दीदी का तो रिश्ता हो गया। वह दो किशोर बच्चों का बाप भी था।  मगर मुझे कोई भी लड़का पसंद नहीं आया।  इस बीच पापा का देहांत हो गया।  उसके बाद मेरी ज़िन्दगी गुमनाम बन गई।  मैं कभी भाइयों के साथ रहती तो कभी दीदी के घर रहती।

कुछ ही दिनों में, मैं उन्हें बोझ लगने लगी थी।  वह चाहते थे जो भी रिश्ता मिले मैं शादी कर लूँ।  मगर मैं ऐसा नहीं चाहती थी।  धीरे-धीरे माहौल ऐसा बनता गया कि सब मुझे ताने देने लगे। और एक वक़्त ऐसा भी आया जब अपने ही घर में मेरा सांस तक लेना भी दुश्वार हो गया था। 

मेरी ज़िन्दगी उस मोड़ पर आ पहुंची थी जहाँ सब सपने खत्म हो जाते हैं।  मैं दुनिया में बिलकुल अकेली हो गई थी।  जिस बहन के लिए मैंने अपने पति को छोड़ दिया था वो भी अब पराई हो चुकी थी।  ना पीहर बचा था, ना ही ससुराल।  मैं हमेशा के लिए अपने भाइयों का घर छोड़ कर जा रही थी।

Indian sad woman in train

मेरी एक सहेली अपने पति के साथ गुजरात के सूरत शहर में रहती थी।  उसने कहा था कि मैं सूरत चली आऊं वह मुझे वहां कोई नौकरी दिला देगी।  इसलिए मैं सूरत जाने के लिए ट्रेन में आ बैठी थी।  600 किलोमीटर का सफर करना था।  वो भी जनरल डिब्बे में बैठ के, मगर ईश्वर का संयोग देखिये उस सफर में पुराना हमसफ़र मेरे पास आ बैठा था। 

गाड़ी शहर से बाहर निकल आई थी।  विपिन खिड़की की तरफ बैठा था।  इसलिए वह अब मोबाइल को छोड़ कर बाहर के नज़रों को देख रहा था।  मैं भी उसकी नज़रों का पीछा करते हुए बाहर देख रही थी।  पता नहीं भगवान ने क्यों ये पल मुझे दिए थे?  थोड़ा सा जीने के लिए।  थोड़ा सा उसे नज़दीक से देखने के लिए।  अब वो मेरा नहीं था।  काश होता तो मैं उससे चिपक कर बैठ जाती।

मेरा मन कर रहा था की मैं उससे बात करूँ।  उसने दूसरी शादी किसके साथ की?  उसके कितने बच्चे हैं?  मैं सब कुछ जान लेना चाहती थी।  मगर कैसे जानती?  उसने तो मुझे पहचाना ही नहीं था।  अचानक टीटी डिब्बे में आ गया और लोगों की टिकट चेक करने लगा।  मैंने महसूस किया की विपिन टीटी को देखकर थोड़ा सा नर्वस हो गया था।  बार-बार पहलू बदल रहा था।

जब टीटी ने मुझसे टिकट के बार में पूछा तो मैंने उसे अपना टिकट दिखा दिया।  मेरे हाथ से टिकट छूटकर निचे गिर गया था, तब विपिन ने मुझे मेरा टिकट उठा कर वापिस दिया।  उस वक़्त पहली बार हमारी आँखें मिली।  मगर उसकी आँखों में अजनबीपन ही था।  ऐसे लगा जैसे उसने मुझे ज़रा भी नहीं पहचाना था।

टीटी ने उससे टिकट दिखाने को कहा तो वह बोला “जल्दबाज़ी में मैं टिकट नहीं ले सका सर! प्लीज, आप एक सूरत तक का टिकट दे दो।”  टीटी बोलै, “जुर्माना लगेगा?” तो इस विपिन बोलै, “ठीक है सर! जुर्माने के साथ टिकट भी काट दीजियेगा!”

Indian couple in love

जब मैंने उसके मुँह से सूरत का नाम सुना तो पता नहीं क्यों मेरे दिल में ख़ुशी के तार झनझना उठे।  वह पूरे सफर में मेरे साथ रहेगा।  मेरे लिए ये बहुत बड़ी ख़ुशी की बात थी।  बात हो या न हो, उसे करीब से निहार तो सकूंगी।  उसके बदन की खुशबू आज भी मेरे ज़हन में कहीं सिमटी हुई थी।  उसके चेहरे की मुस्कान मेरे दिल के किसी कोने में आज भी मेहफ़ूज़ थी। हम दोनों कभी 2 जिस्म, 1 जान हुआ करते थे। 

मैं उठकर टॉयलेट की तरफ गई।  वहाँ वाशबेसिन पर लगे शीशे में मैंने खुद को निहारा।  आज मेरे रूखे चेहरे पर थोड़ी सी लालिमा झलक आई थी।  ये चेहरा भी कम्बख्त क्रीम-पाउडर से इतना नहीं खिलता जितना किसी प्रिय के करीब आने पर चमकने लगता था।  मैंने अपने पर्स से मेकअप का सामान निकाला।  बरसों के बाद खिले मन से होंठों पर लिपस्टिक लगाई। चेहरा धोकर धोड़ी सी फेयर एंड लवली चेहरे पर पोती।  फिर खुद को शीशे में निहारा।  मैं जानती थी कि अब पहले जितनी सुन्दर नहीं हूँ।  अकेलेपन और भाई-भाभियों के तानों से मिली टेंशन ने मेरे चेहरे पर गहरा असर छोड़ा था।  अनिश्चित भविष्य की चिंताओं ने मुझे अंदर से खोखला ही कर दिया था।  अब ज़्यादा ख्वाहिशें ही नहीं बची थी।  बस दो वक़्त का खाना मिल जाये इतनी ही हसरत बाकी रह गई थी।

बहरहाल, खुद को शीशे में देखकर मुझे ज़्यादा ख़ुशी नहीं हुई थी।  अलग-अलग कोनो से मैंने खुद को निहारा।  एक दो बार मुस्कुरा कर भी देखा।  ये सोच कर कि शायद मैं मुस्कुराते हुए तो थोड़ा सुन्दर लागूं।  पिया पास में बैठा है।   क्या पता थोड़ा सा उसके दिल में उतर जाऊं।  और उसे याद आ जाऊं कि कभी मैं उसके दिल की रानी थी, उसकी पत्नी थी।  उसके हाथ को तकिया बनाकर सोती थी।  उसके सीने से सर लगा कर उसकी धड़कन सुनने की कोशिश किया करती थी।  जब तक वो घर नहीं आ जाते थे, उनकी राह तका करती थी। 

जब मैं वापिस अपनी सीट पर आई तब मैंने देखा जहाँ मैं बैठी थी उस खली जगह पर विपिन ने अपना रूमाल रख रखा था।  शायद गलती से रखा हुआ था या उसने जानबूझकर रखा था ताकि मेरी जगह कोई और न बैठ जाये।  क्यूंकि पिछले स्टेशन पर काफी सवारियां ट्रेन में चढ़ी थी। इस कारण काफी भीड़ हो गई थी।  लोग नीचे फर्श पर भी बैठे थे।

मैंने बैठने से पहले उसका रूमाल उठाया फिर उसी हाथ से गाल खुजाने के बहाने रूमाल को नाक के करीब से गुज़ारा।  वही पुरानी खुशबू। वही सेंट था जो वो बरसों पहले लगाया करता था।  रूमाल सूंघते वक़्त मेरी आँखें बंद हो गई थी।  पता नहीं क्यों दिल बार-बार उसी के बारे में सोचना चाहता था। बात करना चाहता था।  उसकी खुशबू, सांसे, धड़कन, सब महसूस करना चाहता था। 

मैं जानती थी रूमाल उसी का है मगर मुझे बोलने का बहाना चाहिए था।  इसीलिए मैंने उससे पूछा, “क्या ये रूमाल आपका है?”  बोलते वक़्त मेरी आवाज़ थोड़ी लड़खड़ा गई थी।  उसने कहा, “जी।” फिर उसने अपना रूमाल ले लिया।  आजकल मैं ठूंठ की तरह सूनी-सूनी रहा करती थी।  मगर उसे करीब पाकर खिल के गुलाब हो गई थी।  एक अलग सी ही चेतना मेरे अंदर दौड़ रही थी।  मुझे उससे बात करनी थी।  मगर वह चुप था।  अजनबी की तरह व्यवहार कर रहा था।

मैं सोच रही थी कि क्या तलाक के बाद दूरियां इतनी बढ़ जाती हैं कि लोग पेहचानने से भी इंकार कर देतें हैं।  ट्रेन किसी स्टेशन पर रुक गई थी।  दिसंबर का महीना होने के कारण मूंगफली, पकौड़ी, और समोसे वाले अपना सामान बेचने के लिए गाड़ी में चढ़ आये थे।   मेरे पास कुछ न था।  अब मैं रिश्तों और पैसों दोनों से गरीब थी।  सच तो ये था कि मेरे पास टिकट लेने के बाद बहुत ही कम पैसे बचे थे।  सूरत में ऑटो का किराया भी लग सकता था।  इसलिए मन होते हुए भी मैं कुछ नहीं खरीद पाई।   वरना, गरमा-गर्म पकौड़ियों को देखते ही मेरे मुँह में पानी आ जाता था। विपिन भी जनता था कि पकौड़ी मेरी पहली पसंद हैं।

Pakode in Indian Train

मैंने देखा था कि विपिन ने बहुत सारी पकौड़ियाँ खरीद ली थी।  फिर उसने खिड़की की तरफ सरकते हुए हमारे बीच में सीट पर थोड़ी जगह बनाई और वहां पर पकौड़ियों से भरी हुई थैली रख दी।  अब गर्म पकौड़ियों की खुशबू सीधे मेरी नाक में घुस रही थी।  मन किया अभी उठा कर खाने लग जाऊँ।  मैं ये भी सोच रही थी कि क्या उसने मुझे पहचान लिया है?  अगर नहीं पहचानता तो पकौड़ियाँ क्यों खरीदता?  वह तो समोसे खाना पसंद करता था।  पकौड़ियों से इसका पेट ख़राब हो जाता था।  उसने ज़रूर ये पकौड़ियाँ मेरे लिए ही खरीदी होंगी।  उसे मेरी पसंद आज भी याद है क्या?  क्या वो आज भी मुझे याद करता है?  सोचते हुए मेरी आँखों में आँसूं तैरने लगे। 

वह गुमसुम सा बैठा था।  पकौड़ियाँ हम दोनों के बीच में रखी-रखी ठंडी हो रहीं थीं।  न वह खा रहा था, न ही उसने खाने के लिए मुझे कहा था।  वैसे भी वह कम बोलता था।  पराई औरतों से बात करने में बहुत ही संकोच करता था।  अब तो मैं भी उसके लिए पराई ही थी, वो भी मेरी खुद की गलती की वजह से। 

मुझसे नहीं रहा गया।  इसलिए मैं बोल पड़ी, “आपकी पकौड़ियाँ ठंडी हो रही है?” उसने चौंक कर मेरी आँखों में देखा मगर कुछ बोला नहीं।  मैंने उसके साथ चार साल गुज़ारे थे।  मैं जानती थी कि जब उसके मन में द्वंद चल रहा होता था तब वह चुप हो जाया करता था।  दिल की बात तो उसे कहना ही नहीं आता था।  वह आज भी नहीं बदला था।  वैसे ही था।  गुमसुम।  चुपचाप सा।  बिलकुल शांत सा।  सबका प्यारा। 

वह फिर से मोबाइल में लग गया था।  उसके मोबाइल खोलते ही मैं भी उसमे देखने लगती थी।  मुझे शायद कुछ तलाश थी उसके मोबाइल में।  मैं उसकी पत्नी और बच्चों की तसवीरें देखना चाहती थी।  वह सुन्दर था।  कमाऊ था।  उसकी दूसरी शादी हर हाल में हो गई होगी।  ये सोचते हुए मैं कन्फर्म करना चाहती थी।  मगर ऐसी कोई तस्वीर मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दी थी।

काफी देर बाद, उसने मोबाइल देखते हुए एक पकौड़ी अपने मुँह में डालते हुए कहा, “आप भी खाइये न।”  इतना सुनते ही मैं पकौड़ियों पर टूट पड़ी।  कोई कुछ भी सोचे। मगर मुझसे नहीं रहा गया।  मैंने उसके साथ अग्नि के चारों ओर सात फेरे लिए थे।  कहतें हैं ये फेरों का रिश्ता सांसे थमने के बाद ही ख़त्म होता है।  फिर चार कागज़ों पर तलाक लिखने से थोड़े टूट जायेगा।  बस काश ये बात मुझे उस वक़्त समझ आ गई होती जब मेरे पिताजी ने वो अजीब-ओ-गरीब शर्त रखी थी, मेरे ससुराल वालों के सामने।  खैर, कागज़ों में न सही, मगर विधि के विधान में वो आज भी मेरा भी पति था।  मैंने उसके सीवा किसी और मर्द की तरफ इस नज़र से कभी भी नहीं देखा था।

पकौड़ी खाते हुए मुझे याद आया कि विपिन ने मुझे “आप” कहा था।  अब मैं “तुम” से “आप” तक आ गई थी।  मतलब दूरियां बहुत बढ़ चुकी थी।  अजीब बात है न कभी-कभी इज़्ज़त मिलने पर भी दुःख होता है।  थोड़ी सी पकौड़ी खाने के बाद मेरा मन भर गया।  अब गले में नहीं उतर रही थी।  अचानक फिर से मेर मन उदास हो गया था।

indian couple in train

वह सूटबूट में था।  मैं पुरानी-सी साड़ी पहने हुए थी।  उसके सामने तो मैं नौकरानी सी लग रही थी।  मैंने खाना छोड़ दिया था।  मेरा मन डांवाडोल हो रहा था।  कभी वो मेरा लगता था।  फिर अचानक पराया लगने लगता था।  वह दो बातें कर लेता तो चैन मिल जाता।  थोड़ा सा करार मिल जाता। मगर शयद ऐसा कुछ मेरा किस्मत में नहीं था।

बाहर अँधेरा होने लगा था।  ठण्ड बढ़ रही थी।  लोग अपने अपने गर्म कपड़े निकाल कर ओढ़ने पहनने लगे थे।  विपिन कोट-पेंट में था।  उसके पास न कोई बैग था।  न कोई अन्य सामान।  वह इतनी सर्द रात कैसे गुज़रेगा?

ये सवाल मेरे ज़हन में हिलोरे मार रहा था।  आधी पकौड़ी भी हमने नहीं खाई थी।  अब वो बिलकुल ठंडी हो चुकी थी।  उसने देखा मैं नहीं खा रही हूँ तब पकौड़ियों को उठाकर उसने दूसरी तरफ रख दी।  मैंने एक हल्का-सा स्वेटर पहन रखा था।  मगर सर्दी बढ़ी तो मैंने अपने बैग में से अपना गर्म स्वेटर निकाल कर पहन लिया।  मगर ज्यों ही मैंने वह स्वेटर पहना, विपिन मेरी तरफ चोर नज़रों से देखने लगा।  अचानक मुझे याद आया कि ये गर्म स्वेटर 9 साल पहले जब हम दोनों शिमला घूमने गए थे तब उसी ने दिलवाया था।

मैंने महसूस किया कि जैसे स्वेटर देखकर उसकी आँखें भर आई हो।  पता नहीं ये मेरा भरम था या सच था।  जब मैं उसकी आँखों की तरफ देखने लगी तब उसने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया था।  रात घिरती जा रही थी और ट्रेन पूरी रफ़्तार के साथ आगे बढ़ती जा रही थी।  मेरे बैग में एक पतला सा कम्बल था।  मैं उसे वो कम्बल देना चाहती थी, मगर कैसे देती?  अभी तक उसका अजनबीपन ही दूर नहीं हुआ था। 

अब बात करना बहुत ज़रूरी हो गया था।  शुरुवात भी मुझे ही करनी थी।  क्योंकि वो झेंपू इंसान था।  उसके भरोसे रहती तो सूरत आ जाता और वो बोल भी नहीं पाता।  फिर मैं धीरे से बोली, “याद है क्या? ये स्वेटर आपका ही दिलवाया हुआ है?”  उसने चौंक कर मेरी तरफ देखा। फिर स्वेटर को गौर से देखा।  फिर हाँ में गर्दन हिलाते हुए बोला, “हाँ, याद है मुझे! कुछ नहीं भूला हूँ मैं!”

उसके इतना कहते ही मैंने मैंने एक लम्बी सांस ली।  शुक्र था कि उसने मुझे पहचानने से इंकार नहीं किया था।

मैं बोली, “इतने लम्बे सफर पर जा रहे हो, अपने लिए गर्म कपड़े नहीं लाये?”

तो उसने कहा, “सफर का प्रोग्राम अचानक ही बन गया था।  इसलिए नहीं ला पाया?”

मैं ख़ुशी के मारे फूली नहीं समां रही थी क्योंकि मुझे तो किसी न किसी बहाने से उससे बात करते ही रहनी थी।  ऐसे में मौक़ा पाते ही मैंने फिर उससे पूछा, “अचानक, वो क्यों?”

इतना सुनते ही वो चुप हो गया।  शयद वो बताना ही नहीं चाहता था।  और आखिरकार उसकी जवाबदेही मुझ पर बनती भी क्या थी!  मगर मैंने हार नहीं मानी।  मैंने बैग से कम्बल निकाला और फिर उसे देते हुए बोली, “ये ले लो, रात को ठण्ड बढ़ेगी।”

उसने भरी आँखों से मेरी तरफ देखा और चुपचाप कम्बल लेकर ओढ़ लिया।  उसकी आँखों में बहुत कुछ था कहने के लिए, लेकिन वो चुप रहा। 

मगर मैं चुप नहीं रह पाई।  मैंने फिर से हिम्मत करके पूछा, “तुम्हारे बीवी-बच्चे कैसे हैं?”

इतना सुनते ही उसने शिकायत भरी नज़रों से मुझे देखा।  फिर बोला, “मैंने दूसरी शादी नहीं की!”  उसके मुँह से ये शब्द सुनकर मुझे इतनी ख़ुशी मिली जिसे लब्ज़ों में बयान करना अब भी मेरे बस में नहीं है। 

मैंने भी धड़कते हुए दिल को सँभालते हुए, थोड़ी सी दबी-कुचली आवाज़ में उससे पूछा, “क्यों नहीं की?”

sad couple hugging on train station

मेरे इस सवाल को सुनकर उसका चेहरा बिगड़ने लगा।  मुझे ऐसा लगा की मनो मैंने कोई पाप-सा कर दिया हो ये घिनोना सवाल कर के।  मगर सच में मुझे इस बात की ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि ऐसा कुछ भी हो सकता था।  इतना सुन्दर, कमाऊ, कम बोलने वाला व्यक्ति किसे नहीं चाहिए होगा।  उस समय मेरा ही दिमाग ख़राब हुआ था जो मैंने घरवालों की बातों में आकर उसे छोड़ दिया था वरना आज का दिमाग होता तो शयद मैं उसे छोड़ने क्या, किसी ट्रिप पर भी अकेले नहीं जाने देती।

फिर उसने आँखें झुकाकर कहा, “तुम्हारे सिवा किसी और का होने का दिल ही नहीं किया।”

बरसों बाद मेरे दिल को इतनी ख़ुशी मिल रही थी कि मुझसे संभाले नहीं संभल रही थी।  वो ख़ुशी मेरे आँखों से बाहर आंसुओं के रास्ते बहने लगी थी।

ऐसे में वो बोलै, “रो क्यों रही हो?”

मैं सुबकते हुए बोली, “गलती आपके भाई की थी और सजा हमे मिली।”

वह बोला कि, “अगर तुम चाहती तो हमारी शादी बच सकती थी!”

मैं बोली, “एक लड़की के लिए शुरुवात में उसके माता-पिता बहुत अहम होते हैं!  उनका कहना मन्ना ही पड़ता है।”

फिर थोड़ी देर के लिए हमारे बीच शान्ति फ़ैल गई जैसे कि सागर में किसी तूफ़ान के आने से पहले की शांति होती है!  फिर मैंने ही उस चुप्पी को तोड़ते हुए बोला, “मगर सच कहूं तो अब मैं बहुत पछता रही हूँ कि काश उस समय मैं उनका कहना न मानती।  तो….”

फिर उसने पूछा, “तो?”

crying indian woman in train

मैंने अपनी गलती सी मानते हुए स्वर में कहा, “तो… ज़िन्दगी मुझे आज ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा ही न करती जब मुझे अपने ही पति से जिसकी मैं एक वक़्त पर जी-जान थी, अजनबियों की तरह बात करनी पड़ रही है!”

फिर से हमारे बीच काफी देर तक चुप्पी छा गई। 

रात होने के कारण अधिकांश लोग सोने लगे थे।  डिब्बे में भी सन्नाटा-सा पसरा हुआ था।  काफी देर बाद वह बोला, “तुम्हारा पति और बच्चे कैसे हैं?  तुम ठीक तो हो न?  खुश तो हो न! बहुत दुबली-पतली हो गई हो?  आख़िरकार, बात क्या है, तुम वाक़ई में ही खुश तो हो न?”

मैंने भरी हुई आँखों से उसे देखा फिर बोली, “मैंने भी दूसरी शादी नहीं की। तुम जैसा कोई और मिला ही नहीं।”  मेरे इतना कहते ही मैंने महसूस किया उसकी आँखों में कुछ उम्मीद की किरणे दिखाई दी थी।  फिर मैंने उसे अपनी पूरी कहानी बताई और वो, चुपचाप पूरी बात सुनता ही रहा।

और आखिर में मैंने कहा, “और अब एक सहेली के पास सूरत जा रही हूँ।  वहीं कोई काम-धंधा करके ज़िन्दगी गुज़ारूंगी।  मेरी वो गलती मुहे बहुत ही भारी पड़ी है, अब मैं बिलकुल अकेली हो गई हूँ।  तुमसे बिछड़ कर बिलकुल तनहा हो गई हूँ!”

फिर वो भी धीरे से बोला, “एक बात कहूं?”

मैं भी जवाब दिया, “कहो!”

couple holding hands

वह बोला, “वापिस लौट आओ ना?”  फिर उसके दिल का दर्द भी आँखों से बाहर आने लगा और फिर करहाती हुई आवाज़ में वो बोलने लगा जो भी उसके दिल में था। 

उसने कहा, “तुम्हारे बिना मुझे जीना नहीं आता।  आज बरसों बाद तुम्हारे शहर आया था।  इत्तेफाक देखो तुम रास्ते में मुझे दिख गई थी।  फिर मैं वहीं गाड़ी खड़ी करके तुम्हारे पीछे-पीछे ट्रेन में आ गया।  तुम्हारा साथ पाने के लिए सफर कर रहा हूँ।  मुझे कहीं भी नहीं जाना था।  तुम्हारी टिकट पर सूरत लिखा था इसलिए मैंने भी वहीं की टिकट ले ली थी।”

उसके मुँह से ये सब सुनकर मैं सन्न रह गई थी।  सुबह जब आज मैं घर से निकली थी तो लगा था कि ये ज़िंदगी का सबसे मनहूस दिन है जब मेरे सारे रिश्ते-नाते पीछे छूट रहे हैं।  अपना कहने को कोई नहीं बचा था।  मगर ऊपरवाला भी शायद मेरा इम्तिहान ही ले रहा था।  थोड़ा सा दर्द देकर उसने मुझे उससे मिला दिया था जो सात जन्मो का साझीदार था।  आज मेरी ज़िन्दगी का सबसे बुरा दिन सबसे अच्छा, सबसे खूबसूरत दिन बन गया था। 

मैं अधीर होकर बोली, “क्या ऐसा हो सकता है?  क्या हम फिर से साथ रह सकतें हैं?  तब उन तलाक के कागज़ों का क्या होगा?”

उसने धीरे से मेरे हाथ पर हाथ रखा।  ज्यों ही मैंने उसके हाथ का स्पर्श पाया, मेरे पूरे बदन में एक सिरहन-सी दौड़ गई। 

वह बोला, “तलाक के कागज़ों को फाड़ देंगे। कोर्ट में फिरसे शादी कर लेंगे।”

उसके इतना कहते ही मैं झटके से उसके सीने से चिपक कर रो पड़ी।  ट्रेन में जो लोग जाग रहे थे उन्होंने सब देख लिया होगा।  मगर मुझे किसी की भी परवाह नहीं थी।  वो मेरा पति था।  भले ही तलाकशुदा था मगर तलाक सात फेरों से बड़ा थोड़े होता है।

अगले स्टेशन पर हम ट्रेन से उतर गए।  वहीं से हमे वापसी के लिए फर्स्ट ऐसी का टिकट मिल गया।  अब केबिन में मैं और वो दोनों ही थे।  रात के अँधेरे को चीर कर ट्रेन दौड़ रही थी।  मगर उस ट्रेन ने मुझे मेरी रौशनी तक, मेरी अपनी असली मंज़िल तक पहुंचा दिया था — सीधा मेरे पति के पास।  जैसा की फिल्मों में होता है।  खैर, ये हकीकत थी।  आज मेरा आठ बरस का बनवास ख़त्म हुआ था और मैं पिया का साथ पाकर बावरी सी हो गई थी। 

अगर आपको ये पोस्ट ज़रा सा भी पसंद आया हो तो ज़रूर अपना प्यार कमेंट सेक्शन में देते हुए जाएं ! मुझे आपके जवाबों का इंतज़ार रहेगा! ढेर सारा प्यार, नमस्कार!!! आपका अपना योगेश नागर!

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